सागर की लहरें अनगिनत
मतवाली नखराली बाँवरी लहरें
एक साथ बहती साथ ही उछलती
मैं तट पर पलकें बिछाकर
स्वागत में खड़ी बाट जोवती
लहरें भी कूदती खिलखिलाती
अपने ही सुर साज में मटकती
मुझे छूकर छेड़कर लौट जाती
मेरे विवश तन पर
उनके स्पर्श की नमी है
मिटटी की उबटन है
मेरे विकल मन पर
उनकी सांसों की छाप है
उनकी गूँज की शहनाई है
विरह और मिलन का गीत
यह अनंत आंखमिचौनी
जीवन का उपहार है
सांसों का आधार है